फिर एक बार पत्रकार हुए मारपीट के शिकार, पुलिस ने दिया कार्यवाही का आश्वासन।।।
झोलाछाप डॉक्टर ने पत्रकारों से गाली गलौज करते हुए जान से मारने की दी धमकी, पुलिस ने दिया कार्यवाही का आश्वासन।
एक पत्रकार दिन भर सभी मौसमो में कड़ी मेहनत कर सूचनाएं व समाचार एकत्र करता है किसके लिए ? केवल एक अच्छे समाज के विकास के लिए अपनी जान का जोखिम लेकर घूमता है पर इसी समाज के कुछ लोगो द्वारा उन्हें बिल्कुल असहाय समझ लिया जाता है और अत्याचार, भ्रष्टाचार, दुराचार लगातार बढ़ रहा है,और पत्रकारों पर हमले की घटनाएं भी बढ़ रही हैं।
*पत्रकार पर हमले-खबरों से आखिर खौफ़ क्यों?*
दरअसल, मीडिया और पत्रकारों पर हमला वही करते हैं या करवाते हैं जो इन बुराइयों में डूबे हुए हैं। ऐसे लोग दोहरा चरित्र जीते हैं। ऊपर से सफेदपोश और भीतर से काले-कलुषित। इनके धन-बल, सत्ता-बल और कथित सफल जीवन से आम जनता चकित रहती है। वो इन्हें सिर-माथे पर बिठा लेती है। लेकिन मीडिया जब इनके काले कारनामों की पोल खोलने लगता है तो ये बौखला जाते हैं और उन पर हमले करवाते हैं। पुलिस और शासन तंत्र भी इन्हीं का साथ देते हैं। बल्कि कई बार तो मिले हुए भी नजर आते हैं। दिखावे के तौर पर ज़रूर मामले दर्ज कर लिये जाते हैं, लेकिन होता कुछ नहीं।हाल ही में सामने एक मामला आया है जब आज कुछ पत्रकार गण शाम 5.30 बजे सारागांव स्थित सोमवारी बाजार में किराए के मकान में संचालित बंगाली दवाखाना में क्लीनिक चलाने संबंधित डिग्री व अनुमति के बारे में पूछताछ कर ही रहे थे कि डाक्टर द्वारा मीडिया कर्मियों को पैसे का लालच दिया गया। मीडिया कर्मियों द्वारा पैसे न लेने की बात कही गई और मामला प्रकाशित करने की बात कही गई तो डॉक्टर द्वारा उनके साथ गाली गलौच करते हुए उन्हें जान से मारने की धमकी देते हुए झुमा झपटी की गई कुछ स्थानीय लोगो द्वारा वहां बीच बचाव किया गया अन्यथा एक बड़ी घटना घट सकती थी।
*पत्रकार सुरक्षा की आवश्यकता क्यों?*
अब ऐसे में एक पत्रकार क्या करे ? यदि इस प्रकार की घटनाएं होती रहेंगी तो स्वतन्त्र पत्रकारिता करना मुश्किल हो जाएगा इसलिए पत्रकारों की सुरक्षा के मामले में भारत विश्व के देशों में निरंतर पिछड़ता जा रहा है। दुनिया में मीडिया और पत्रकारों की सुरक्षा पर नजर रखने वाली ब्रिटेन की संस्था आई.एन.एस.आई. यानि इंटरनेशनल न्यूज सैफ्टी इंस्टीट्यूट की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक सबसे खराब पांच देशों की सूची में भारत पत्रकारों के लिए ‘दूसरा सबसे खतरनाक’ देश है। पत्रकारों से मारपीट, अपहरण और हत्याओं की पृष्ठभूमि की एक मात्र मंशा मीडिया की आवाज को दबाना है। सवाल उठना लाज़िमी है कि पत्रकारों के प्रति जिस तरह से हिंसा की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं, कहीं वो लोकतंत्र में असहमति और आलोचना की घटती जगह का सबूत तो नहीं। इन सभी मामलों में जो बातें सामने आई हैं वो ये कि हत्या और हमले का आरोप नेताओं, बाहुबलियों और पुलिस पर समान रूप से लगा है। मारे गए पत्रकारों ने प्रभावशाली लोगों के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ रखी थी और ये सभी स्वतंत्र पत्रकार थे, यानि उनके साथ खड़ा होने वाला कोई मज़बूत मैनेजमेंट नहीं था। निश्चित ही पत्रकार मुश्किल हालात में काम कर रहे हैं। शासन-तंत्र पत्रकारों की सुरक्षा करने में नाकाम रहा है।
*डॉक्टर के खिलाफ कार्यवाही की मांग*
इस मामले की लिखित शिकायत सहारा समय न्यूज़ ऑनलाइन न्यूज चैनल के जांजगीर-चम्पा के ब्यूरो चीफ दिलीप यादव व आई एन एन के फलेश पांडे, नेशन लाइव लक्ष्मी कांत बरेठ द्वारा सारागांव थाने में की गई। पर पुलिस द्वारा उच्च अधिकारी की अनुपस्थिति बता कर मामले में एफ आई आर दर्ज नही की गई। जो कहीं न कहीं पुलिस कार्यवाही पर उंगली उठाने जैसा है। क्योंकि जब एक पत्रकार द्वारा लिखित शिकायत की एफ आई आर में उच्च अधिकारियों का हवाला दिया जा रहा तो अन्य नागरिकों के साथ कैसा व्यवहार होता होगा सोचनीय विषय है।
फिलहाल पुलिस द्वारा पत्रकारों को कार्यवाही का भरोसा दिया गया। राज्य शासन द्वारा जबकि सभी झोला छाप दवाखाने को बंद करने की हिदायत और लगातार कार्यवाही की गई थी फिर भी इस तरह के दवाखाने का संचालन कर लोगो के जीवन के साथ खेलवाड़ किया जा रहा है । और जब एक पत्रकार उसको उजागर करने पहुंच रहा तो उसे जान से मारने की धमकी मिल रही है उसके साथ अभद्र व्यवहार किया जा रहा है। जल्द ही यदि पत्रकार सुरक्षा कानून लागू नही किया गया तो देश का चौथा स्तम्भ समाप्त हो जाएगा। और देश भ्रस्टाचार में पूरी तरह लिप्त हो जाएगा।