लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में शामिल है ‘खालसा-ए-विरासत’, खासियत जान हो जाएंगे इसके दीवाने

दुनियाभर में विलक्षण पहचान बना चुके विरासत-ए-खालसा में पर्यटकों की गिनती केवल 7 सालों में अब तक 97 लाख से भी ज्यादा हो चुकी है।

 

घूमना फिरना किसे अच्छा नहीं लगता, लेकिन घूमने फिरने की बात आए तो मन में सिर्फ पहाड़, झरने ही आते हैं या फिर पुरातन इमारतें, जिन्हें देखकर वहां की कहानियां याद आती हैं। बचपन में इतिहास की किताबों के जरिए इन्हें अपने जहन में उतारा था। ऐसे ही इतिहास के पन्नों पर उकरी खालसा पंथ की इबारत को विरासत के रूप में संजोया है विरासत-ए-खालसा में।

 

हिमाचल के पहाड़ों की गोद में बसा है पंजाब का श्री आनंदपुर साहिब शहर। यह खालसा पंथ की जन्म भूमि भी है। यहीं बनाया गया विरासत-ए-खालसा, इमारतसाजी का एक जबरदस्त नमूना होने के साथ-साथ पंजाब की अमीर विरासत का शो केस भी है। आज यह देश का बेहतरीन म्यूजियम बन चुका है, जिसकी पुष्टि लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड ने भी कर दी है। दुनियाभर में विलक्षण पहचान बना चुके विरासत-ए-खालसा में पर्यटकों की गिनती केवल 7 सालों में अब तक 97 लाख से भी ज्यादा हो चुकी है। खास बात यह है 2018 में पिछले तीन सालों में सबसे ज्यादा पर्यटक विरासत-ए-खालसा को देखने आए।

अपने साथ लाएं आइडी प्रूफ

 

विरासत-ए-खालसा में जाने के लिए आइडी प्रूफ लाना जरूरी है। टिकट काउंटर पर यह देखा जाता है। इसके अलावा, जब अंदर गैलरियों को देखने के लिए ऑडियो सिस्टम दिया जाता है, तो वहां आइडी प्रूफ जमा करवाना होता है।

 

97 लाख पर्यटक आ चुके हैं अब तक

 

साल 2011 से लेकर अब तक 97.01 लाख पर्यटक विरासत-ए-खालसा को देखने आ चुके हैं। इनमें कनाडा के प्रधानमंत्री, मौरीशस के राष्ट्रपति, राज्यों के राज्यपाल, मुख्यमंत्री और कैबिनेट मंत्री समेत विभिन्न देशों के मैंबर पार्लियामेंट और राजदूत साहिबान आदि शामिल हैं।

 

कैसे पहुंचें

 

श्री आनंदपुर साहिब रेल और सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है। चंडीगढ़ से नंगल-ऊना की ओर जाने वाली सभी गाडि़यां श्री आनंदपुर साहिब होकर गुजरती हैं। दूर से आने वालों के लिए नजदीकी हवाई संपर्क चंडीगढ़ है, जहां से श्री आनंदुपर साहिब 80 किलोमीटर है। यहां से कैब करके मात्र डेढ़ घंटे में विरासत-ए-खालसा पहुंचा जा सकता है।

 

कब बनी यह इमारत

 

विरासत-ए-खालसा का संकल्प तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का था, जिन्होंने खालसा पंथ की त्रैशताब्दी से पूर्व 22 नवंबर, 1998 को पांच प्यारों से इसका शिलान्यास किया गया। 2011 में पहला चरण आम लोगों के लिए खोल दिया गया। 2016 में दूसरा चरण खोला गया।

 

कुल 118 एकड़ एरिया में तीन ब्लॉक हैं ए, बी और सी। जो पूरे 326 करोड़ रुपए की लागत से बनकर तैयार हुआ है। अंदर डिजिटल लाइब्रेरी भी, है जहां करीब 8000 किताबें हैं। 428 सीटों वाला आडिटोरियम भी बनाया गया है। हफ्ते में एक दिन सोमवार को विरासत-ए-खालसा बंद होता है, जबकि साल भर में दो बार एक-एक हफ्ते के लिए रखरखाव के लिए बंद किया जाता है। 24 जनवरी से 31 जनवरी और 24 जुलाई से 31 जुलाई तक यह बंद रहता है।

 

चंडीगढ़ से इन्द्रप्रीत

 

 

 

 

 

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